माँ बगलामुखी उपासना

बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है दुल्हन। कुब्जिका तंत्र के अनुसार, बगला नाम तीन अक्षरों से निर्मित है व, ग, ला; ‘व’ अक्षर वारुणी, ‘ग’ अक्षर सिद्धिदा तथा ‘ला’ अक्षर पृथ्वी को संबोधित करता है। अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है।

बगलामुखी देवी का प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में माना जाता है। कहते हैं कि हल्दी रंग के जल से इनका प्रकाट्य हुआ था। हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं। एक अन्य मान्यता अनुसार देवी का प्रादुर्भाव भगवान विष्णु से संबंधित हैं। परिणामस्वरूप देवी सत्व गुण सम्पन्न तथा वैष्णव संप्रदाय से संबंध रखती हैं। परन्तु, कुछ अन्य परिस्थितियों में देवी तामसी गुण से संबंध भी रखती हैं।

इनके कई स्वरूप हैं। कहते हैं कि देवी बगलामुखी, समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय द्वीप में अमूल्य रत्नों से सुसज्जित सिंहासन पर विराजमान हैं। देवी त्रिनेत्रा हैं, मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती है, पीले शारीरिक वर्ण युक्त है, देवी ने पीला वस्त्र तथा पीले फूलों की माला धारण की हुई है। देवी के अन्य आभूषण भी पीले रंग के ही हैं तथा अमूल्य रत्नों से जड़ित हैं। देवी, विशेषकर चंपा फूल, हल्दी की गांठ इत्यादि पीले रंग से सम्बंधित तत्वों की माला धारण करती हैं। यह रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं।

देवी देखने में मनोहर तथा मंद मुस्कान वाली हैं। एक युवती के जैसी शारीरिक गठन वाली देवी ने अपने बाएं हाथ से शत्रु या दैत्य के जिह्वा को पकड़ कर खींच रखा है तथा दाएं हाथ से गदा उठाए हुए हैं, जिससे शत्रु अत्यंत भयभीत हो रहा है। देवी के इस जिव्हा पकड़ने का तात्पर्य यह है कि देवी वाक् शक्ति देने और लेने के लिए पूजी जाती हैं। कई स्थानों में देवी ने मृत शरीर या शव को अपना आसन बना रखा है तथा शव पर ही आरूढ़ हैं तथा दैत्य या शत्रु की जिह्वा को पकड़ रखा हैं।

भारत में मां बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं जो क्रमश: दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा जिला शाजापुर (मध्यप्रदेश) में हैं। तीनों का अपना अलग-अलग महत्व है। यहां देशभर से शैव और शाक्त मार्गी साधु-संत तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते रहते हैं।

माता बगलामुखी शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है। शांति कर्म में, धन-धान्य के लिए, पौष्टिक कर्म में, वाद-विवाद में विजय प्राप्त करने हेतु देवी उपासना व देवी की शक्तियों का प्रयोग किया जाता हैं। देवी का साधक भोग और मोक्ष दोनों ही प्राप्त कर लेते हैं। वे चाहें तो शत्रु की जिव्हा ले सकती हैं और भक्तों की वाणी को दिव्यता का आशीष दे सकती हैं। देवी वचन या बोल-चाल से गलतियों तथा अशुद्धियों को निकाल कर सही करती हैं।

बगलामुखी शतनाम स्तोत्र –

नारद उवाच

भगवन् ! देवदेवेश ! सृष्टि – स्थिति – लयात्मक ! |

शतमष्टोत्तरं नाम्नां बगलाया वदाऽधुना || १ ||

नारदजी बोले – हे देवदेवेश भगवान् | सृष्टि – स्थिति तथा प्रलय के कारणभूत आप मुझे अष्टोतर शतनाम बगलामुखी स्तोत्रपाठ का ज्ञान प्रदान करें || १ ||

श्रीभगवानुवाच

शृणु – वत्स ! प्रवक्ष्यामि नाम्नामष्टोत्तरं शतभ् |

पीताम्बर्या महादेव्याः स्तोत्रं पापप्रणाशनम् || २ ||

यस्य प्रपठनात् सद्यो वादी मूको भवेत् क्षणात् |

रिपूणां स्तम्भनं याति सत्यं सत्यं वदाम्यहम् || ३ ||

श्री भगवान् ने कहा – हे वत्स ! सुनो | मैं तुम्हें पीताम्बरा महादेवी का पापविनाशक अष्टोतर शतनाम स्तोत्र बतलाता हूँ | उस स्तोत्र के पाठ करने से मूक प्राणी ( गूँगा मनुष्य ) की अवरुद्ध वाणी शीघ्र ही खुल जाती है तथा उसके शत्रुओं की गति भी रुक जाती है | यह बात मैं तुम से नितान्त सत्य कहता हूँ || २ – ३ ||

विनियोगः –

ॐ अस्य श्रीपीताम्बर्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रस्य सदाशिव ऋषिरनुष्टुप्छन्दः , श्रीपाताम्बरी देवता श्रीपीताम्बरीप्रीतये जपे विनियोगः |

इस पीताम्बरा शतनाम स्तोत्र के सदाशिव ऋषि, अनुष्टुप्छन्द तथा देवता पीताम्बरा है | पीताम्बरा के प्रीत्यर्थ इसका विनियोग किया जा रहा है | उक्त विनियोग मन्त्र को पढ़कर हाथ में लिये हुए जल को भूमि पर छोड़ देना चाहिए |

ॐ बगला विष्णु – वनिताविष्णु – शङ्कर – भामिनि |

बहुला वेदमाता च महाविष्णुप्रसूरपि || १ ||

महामत्स्या महाकूर्मा महावाराहरुपिणी |

नरसिंहप्रिया रम्या वामना वटुरूपिणी || २ ||

जामदग्न्यस्वरूपा च रामा रामप्रपूजिता |

कृष्णा कपर्दिनि कृत्या कलहा कलहकारिणी || ३ ||

बुद्धिरूपा बुद्धभार्या बौद्ध – पाखण्ड – खण्डिनी |

कल्किरूपा कलिहरा कलिदुर्गतिनाशिनी || ४ ||

बगला,विष्णुवनिता,विष्णुशंकरभामिनी, बहुला, वेदमाता, महाविष्णु-प्रसू, महामत्स्या, महाकर्मा,महावाराहरुपिणी,नारसिहप्रिया, रम्या, वामना, वटरुपिणी, जागदग्न्यस्वरूपा, रामा, रामप्रपूजिता, कृष्णा, कपर्दिनि, कृत्या, कलहा, कलहकारिणी, बुद्धिरुपा, बुद्धिभार्या, बौद्धपाखण्डखण्डिनी, कल्किरुपा, कलिहरा तथा कलिदुर्गतिनाशिनी || १ – ४ ||

कोटिसूर्यप्रतीकाशा कोटि – कन्दर्प – मोहिनी |

केवला कठिना काली कलाकैवल्यदायिनी || ५ ||

केशवी केशवाराध्या किशोरी केशवस्तुता |

रुद्ररूपा रुद्रमूर्ती रुद्राणी रुद्रदेवता || ६ ||

नक्षत्ररूपा नक्षत्रा नक्षत्रेश – प्रपूजिता |

नक्षत्रेश – प्रिया नित्या नक्षत्रपति – वन्दिता || ७ ||

नागिनी नागजननी नागराज – प्रवन्दिता |

नागेश्वरी नागकन्या नागरी च नगात्मजा || ८ ||

कोटिसूर्यप्रतिकाशा, कोटिकन्दर्पमोहिनी, केवला, कठिना, काली, कला, कैवल्यदायिनी, केशवी, केशवाराध्वा, किशोरी, केशवास्तुता, रुद्ररुपा, रुद्रमूर्ति, रुद्राणी,रुद्रदेवता, नक्षत्ररुपा, नक्षत्रा, नक्षत्रेशप्रपूजिता ( चंद्रमा द्वारा पूजित ), नक्षत्रेशप्रिया, नित्या, नक्षत्रपतिवंदिता, नागिनी, नागजननी, नागराजप्रवन्दिता, नागेश्वरी, नागकन्या, नागरी तथा नगात्मजा || ५ – ८ ||

नगाधिराज – तनया नगराज – प्रपूजिता |

नवीना नीरदा पिता श्यामा सौन्दर्यकारिणी || ९ ||

रक्ता नीला घना शुभ्रा श्वेता सौभाग्यदायिनी |

सुन्दरी सौभगा सौम्या स्वर्णाभा स्वगतिप्रदा || १० ||

रिपुत्रासकरी रेखा शत्रुसंहारकारिणी |

भामिनी च तथा माया स्तम्भिनी मोहिनीशुभा || ११ ||

राग – द्वेषकरी रात्री रौरव – ध्वंसकारिणी |

यक्षिणी सिद्धनिवहा सिद्धेशा सिद्धिरूपिणी || १२ ||

नगाधिराजतनया, नगराजप्रपूजिता, नवीना, निरदा, पीता, श्यामा, सौन्दर्यकारिणी, रक्ता, नीला,धना, शुभ्रा, श्वेता,सौभाग्यदायिनी, सुन्दरी, सौभगा, सौम्या,स्वर्णाभा, स्वगतिप्रदा, रिपुत्रासकरी, रेखा, शत्रुसंहारकारिणी, भामिनी, माया, स्तंभिनी, मोहिनी, शुभा, राग-द्वेषकरी, रात्री, रौरवध्वंसकारिणी, याक्षिणी, सिद्धनिवहा, सिद्धेशा तथा सिद्धिरुपिणी || ९ – १२ ||

लङ्कापति – ध्वंसकरी लङ्केशरिपु – वन्दिता |

लङ्कानाथ – कुलहरा महारावणहारिणी || १३ ||

देव – दानव – सिद्धौघ – पूजिता मरमेश्वरी |

पराणुरूपा परमा परतन्त्रविनाशिनी || १४ ||

वरदा वरदाराध्या वरदान परायणा |

वरदेशप्रिया वीरा वीरभूषण भूषिता || १५ ||

वसुदा बहुदा वाणी ब्रह्मरूपा वरानना |

बलदा पीतवसना पीतभूषण – भूषिता || १६ ||

लंकापतिध्वंसकरी, लंकेशरिपुवन्दिता, लंकनाथा, कुलहरा, महारावणहरिणी, देव-दानव-सिद्धौधपूजिता, परमेश्वरी, पराणुरुपा, परमा, परतन्त्रविनाशिनी, वरदा, वरदाराध्या, वरदानपरायणा, वरदेशप्रिया, वीरा, वीरभूषण-भूषिता, वसुदा, बहुदा, वाणी, ब्रह्मरुपा, वरानना, बलदा, पीतवसना तथा पीत-भूषण-भूषिता || १३ – १६ ||

पीतपुष्प – प्रिया पितहारा पीतस्वरूपिणी |

इति ते कथितं विप्र ! नाम्नामष्टोत्तरं शतम् || १७ ||

यः पठेद् पाठयेद् वाऽपि शृणुयाद् वासमाहितः |

तस्य शत्रुः क्षयं सद्यो याति नैवात्र संशयः || १८ ||

पितपुष्पप्रिया,पीतहारा तथा पीतस्वरुपिणी |

हे विप्र ! मैंने तुम्हें पीताम्बरा का अष्टोत्तरशतनाम बता दिया | जो मनुष्य स्थिरचित्त से इसका पठन-पाठन करते या सुनते हैं उनके शत्रु शीघ्र ही विनष्ट हो जाते हैं |

इसमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं करना चाहिए || १७ – १८ ||

प्रभातकाले प्रयतो मनुष्यः पठेत् सुभक्तया परिचिन्त्य पीताम् |

द्रुतं भवेत् तस्य समस्त – वृद्धि – र्विनाशमायाति च तस्य शत्रुः || १९ ||

जो व्यक्ति प्रातःकाल संयतचित्त होकर पीताम्बरा बगलामुखी का ध्यान करके भक्तिभाव से इस स्तोत्र का पाठ करता है उसकी बुद्धि तत्क्षण ही संयमित हो जाती है तथा उसके सम्पूर्ण शत्रुओं का विनाश हो जाता है || १९ ||

।।जय श्रीकृष्ण।।

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